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Maha shivaratri 2025: 9 दिन 9 रूप में दर्शन देते हैं बाबा महाकाल, हर स्वरूप का खास महत्व

बाबा महाकाल
बाबा महाकाल

Maha shivaratri 2025 : नवरात्रि की तरह ही महाशिवरात्रि पर उज्जैन (मध्यप्रदेश) स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष महाशिव नवरात्रि उत्सव का आयोजन होगा। यह शुभ आयोजन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की पंचमी से आरंभ होकर महाशिवरात्रि तक चलता है।
हजारों वर्षों से मनाया जा रहा यह उत्सव शिवभक्तों के लिए असीम श्रद्धा और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। इस दौरान भोलेनाथ के नौ दिव्य रूपों की विशेष पूजा-अर्चना और अभिषेक किया जाता है। हर दिन अलग-अलग स्वरूप में भगवान शिव की चंदन, पुष्पमालाओं और दिव्य पूजन सामग्रियों से आराधना की जाती है।
मान्यता है कि जो भक्त इन नौ दिनों तक बाबा महाकाल की साधना और उपासना करता है, उसे पुण्यफल मिलता है।
पढ़िए किस दिन किस स्वरूप में दर्शन देते हैं बाबा…

पहला दिन: हल्दी अर्पण

भक्तों का ध्यान आकर्षित करता है बाबा का हल्दी से सजाया गया रूप। भगवान महाकाल का चंदन से शृंगार किया जाता है। जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जाती है और भक्त भगवान के हल्दी के रूप को देखकर मन ही मन धन्य हो जाते हैं। इस दिन बाबा के सौम्य रूप में भक्तों को शांति का अहसास होता है।

दूसरा दिन: शेषनाग रूप

दूसरे दिन बाबा महाकाल शेषनाग के रूप में भक्तों के बीच आते हैं। वह रचनात्मकता, शक्ति और असीमितता के प्रतीक के रूप में शेषनाग की महिमा को जीते हैं। यह रूप भक्तों के दिलों में भगवान की अनंत शक्ति का अहसास जगाता है, जैसे धरती का हर कोना उनकी शक्ति से पोषित हो।

तीसरा दिन: घटाटोप रूप

तीसरे दिन बाबा महाकाल के घटाटोप रूप में दर्शन होते हैं। यह दिन कुछ खास होता है, क्योंकि बाबा अपने घने और भीषण रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। यह दिन अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का दिन होता है, जहां भक्त बाबा के आशीर्वाद से जीवन के संकटों को पार करने की शक्ति पाते हैं।

चौथा दिन: छबीना रूप

चौथे दिन बाबा महाकाल का रूप राजकुमार सा सजाया जाता है। इस रूप में वह हर भक्त को राजसी शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। जैसे एक राजकुमार अपनी प्रजा को शांति और सुख देने आता है, वैसे ही बाबा महाकाल का यह रूप भक्तों के दिलों में अमिट छाप छोड़ जाता है।

पांचवां दिन: होलकर रूप

पांचवें दिन बाबा महाकाल का शृंगार होलकर परंपरा के अनुसार किया जाता है। यह दिन पारंपरिक वैभव और आस्था का प्रतीक है। इस दिन का उत्सव, महाकाल के साथ जुड़ी कई मान्यताओं और इतिहास को श्रद्धा के साथ मनाने का अवसर होता है।

छठवां दिन: मनमहेश रूप

छठवें दिन बाबा महाकाल को मनमहेश रूप में सजाया जाता है। यह दिन भक्तों के लिए ध्यान और साधना का समय होता है। बाबा का यह रूप अंदर की शांति और ध्यान की शक्ति का अहसास कराता है। भक्तों को यह महसूस होता है कि शिव ही सच्चे गुरु हैं, जो जीवन के हर रास्ते पर मार्गदर्शन करते हैं।

सातवां दिन: उमा महेश रूप

सातवें दिन महाकाल बाबा और मां पार्वती का संयुक्त रूप भक्तों को मिलते हैं। उमा महेश स्वरूप में भगवान शिव और मां पार्वती की जोड़ी सृष्टि की रचनात्मकता तथा उसके संतुलन का प्रतीक बनकर सामने आती है। इस रूप में दोनों के सामंजस्य और प्रेम को देखकर भक्तों का मन प्रफुल्लित हो उठता है।

आठवां दिन: शिव तांडव रूप

आठवें दिन महाकाल का रौद्र रूप सामने आता है। शिव तांडव के इस रूप में बाबा महाकाल का प्रचंड रूप दिखाई देता है, जैसे सृष्टि के विनाश और पुनर्निर्माण का काल चक्र चलता हो। भक्त इस रूप को देखकर यह समझ जाते हैं कि जीवन में बुराई का नाश और अच्छाई का उदय होना जरूरी है।

नौवां दिन: निराकार धारण

महाशिवरात्रि की रात को अंतिम रूप में बाबा महाकाल को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है। फूलों का सहरा उनके सिर पर रखा जाता है और उनका रूप पूरी तरह से आभायुक्त होता है। यह दिन नई शुरुआत का प्रतीक होता है, जैसे जीवन के हर मोड़ पर बाबा का आशीर्वाद हर भक्त के साथ हो।