मध्यप्रदेश हाईकोर्ट (MP High Court) ने कहा है कि संविधान में हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए आरक्षण या लिखित परीक्षा का प्रावधान नहीं है। कॉलेजियम जजों ने कानून बनाया था और यह बाध्यकारी है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कॉलेजियम प्रणाली का अस्तित्व न्यायाधीश द्वारा बनाए गए कानून के कारण है, पर संविधान के अनुच्छेद 141 के हिसाब से यह हर न्यायालय, कार्यपालिका और विधायिका पर बाध्यकारी है।
अपनी इसी टिप्पणी के साथ मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक यानी एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू व जस्टिस अमर नाथ (केशरवानी) ने एक वकील की याचिका को खारिज कर दिया है। वकील ने नवंबर 2023 में याचिका दायर कर हाईकोर्ट जज के पद पर की गई नियुक्तियों को रद्द करने की मांग की थी।
अदालत ने यह भी साफ किया है कि हाईकोर्ट यानी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद संवैधानिक है। नियुक्तियां केवल संविधान में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके की जाती हैं।
अदालत की टिप्पणी
अदालत ने कहा, कोई भी कानून, वैधानिक नियम या कार्यकारी निर्देश हाईकोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए संविधान में निर्धारित प्रक्रिया को प्रतिस्थापित या पूरक नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने इसके पीछे तर्क देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में विज्ञापन जारी करने या चयन परीक्षा आयोजित करने की कोई जरूरत नहीं है।