Home Real खबर Kishore Kumar… एक जिंदादिल इंसान, हरफनमौला शख्सियत

Kishore Kumar… एक जिंदादिल इंसान, हरफनमौला शख्सियत

दादाजी (धूनी वाले), दादा (पं.माखनलाल चतुर्वेदी) और दा (किशोर कुमार)… इन्हीं से खंडवा दुनियाभर में विख्यात है। आज बात किशोर कुमार (Kishore Kumar)की। 4 अगस्त को उनकी जयंती है।

खंडवा के बॉम्बे बाजार में किशोर दा की जन्मस्थली है गांगुली हाउस। वक्त के साथ इस धरोहर को अतिक्रमण ने अब और जकड़ लिया है। यादों को सहेजे इस धरोहर को धीरे-धीरे झरते-मिटते हुए देखने का अवसादभरा अनुभव बार-बार होता है।
अब वहां बरामदे में ही जाया जा सकता है। भवन ज्यादा जर्जर होने से और भीतर या ऊपर जाने की मनाही है। सामने दीवार पर किशोर दा की एक फोटो है। नीचे एक फ्रेम में कुछ और दूसरे दुर्लभ फोटो, ठहरी हुई घड़ी, एक कैलेंडर। यहां फिल्म नमक हराम के गीत मैं शायर बदनाम के बोल ‘मेरे घर से तुमको कुछ सामान मिलेगा…दीवाने शायर का इक दीवान मिलेगा…’ बरबस ही ऐसे लगते हैं, जैसे किशोर दा ने अपने लिए ही गाए हों। कुल मिलाकर निचोड़ यह दिखता है कि समृद्ध परंपरा, संस्कृति और हजारों-हजार स्मृतियों को अपने में समेटे खंडवा ने आधुनिकता की चादर तो ओढ़ ली, पर अपने पुरोधा को बिसरा दिया।
अलग-अलग भाषाओं के 2900 से ज्यादा गानों में आवाज, 102 फिल्मों में अभिनय, 24 गीतों का लेखन, 15 फिल्मों की कहानी, 14 फिल्में बनाने और 12 फिल्मों का निर्देशन करने वाले हरफनमौला किशोर कुमार को एक बड़ा वर्ग जयंती-पुण्यतिथि पर ही याद करता है। एक वर्ग का भावुक पक्ष किशोर दा की स्मृतियों को अक्षुण्ण बनाए रखने की कोशिशों में सफल न हो पाना भी है।


यहां से थोड़े आगे चलने पर लाला की पोहे-जलेबी की दुकान है। बचपन में किशोर कुमार (आभास कुमार गांगुली) मां से पैसे लेकर इसी दुकान पर दूध-जलेबी छकते थे। दुकान पर किशोर दा का फोटो भी लगा हुआ है।

 

खंडवा से उनका बेहद लगाव था। किशोर दा ने जब-जब स्टेज-शो किए, हमेशा संबोधन करते थे-‘मेरे दादा-दादियों।’ मेरे नाना-नानियों। मेरे भाई-बहनों, तुम सबको खंडवे वाले किशोर कुमार का राम-राम…नमस्कार।

वे मुंबई की चकाचौंध से दूर खंडवा में ही बस जाना चाहते थे, लेकिन उनकी मुराद पूरी नहीं हो सकी। 1985 में एक अंग्रेजी वीकली को दिए साक्षात्कार में मुंबई से जाने के सवाल पर उन्होंने कहा था, ‘इस मित्रविहीन शहर में कौन रह सकता है? क्या ऐसा कोई दोस्त है यहां जिस पर तुम भरोसा कर सकते हो? मैंने तय कर लिया है कि मैं इस चूहादौड़ से बाहर निकलूंगा और वैसे ही जीऊंगा जैसे जीना चाहता था। अपने पैतृक निवास खंडवा में। पुरखों की जमीन पर।’

उन्होंने तो यहां तक लिख दिया था कि ‘मेरी मौत चाहे जहां भी हो, पर शरीर को खंडवा ही ले जाया जाए, अंतिम यात्रा बैलगाड़ी पर निकले और अंतिम संस्कार वहीं हो, जहां माता-पिता का किया गया था।’ उनके निधन पर ऐसा ही किया गया।

आठ बार मिला फिल्म फेयर

किशोर कुमार गायकी के लिए करीब 27 बार फिल्म फेयर के लिए नामित हुए। 8 बार ये पुरस्कार उन्हें मिला भी। उनकी आवाज के जादू से देवआनंद सदाबहार हीरो कहलाए। राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन को भी बड़ा मुकाम मिला।

दुनिया को सिखाया

किशोर दा ने संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी, पर यूडलिंग के जरिए नई विधा को जन्म दिया। गीतों की पंक्तियों को दाएं से बाएं गाने में वे मास्टर थे। अटपटी बातों को अलहदा अंदाज में कहने की कला ने ही उन्हें बड़ा मुकाम दिलाया।