मध्यप्रदेश हाईकोर्ट (High Court) ने कहा है कि कोई भी आरोपी थाने में एफआईआर यानी प्राथमिकी दर्ज होने से पहले सुनवाई के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। इसलिए इस फैक्ट पर FIR रद्द नहीं की जा सकती है कि अपराध दर्ज होने से पहले आरोपी की सुनवाई नहीं की गई।
दरअसल, HighCourt एक याचिका की सुनवाई कर रहा था। जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की बेंच ने इस मामले में याचिकाकर्ता अभिषेक पांडे की अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है। याचिका में एक स्कूल में जबरिया घुसने और स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोपों पर उसके खिलाफ दर्ज दो एफआईआर को चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का दिया हवाला
याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि पुलिस को केस दर्ज करने से पहले मामले की शुरुआती जांच करना चाहिए, लेकिन अदालत ने उसकी यह मांग खारिज करते हुए याचिका रद्द कर दी है। कोर्ट ने ललिता कुमारी वर्सेज यूपी सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2014 में दिए गए उस फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि शुरुआती जांच करना वांछनीय है। प्रारंभिक जांच नहीं करने के आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती है।
सीबीआई जांच का उदाहरण
इसी के साथ हाईकोर्ट ने सीबीआई और अन्य वर्सेज थोम्मांद्रू हन्ना विजयलक्ष्मी, टी.एच. विजयलक्ष्मी और अन्य एलएल 2021 एससी 551 के केस में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया, जिसमें माना गया था कि भ्रष्टाचार के केस में सीबीआई यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो की प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।