bhopal van vihar white tiger dies: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल वन विहार नेशनल पार्क की इकलौती सफेद बाघिन ‘रिद्धि’ अब इस दुनिया में नहीं रही। 15 साल की रिद्धि पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रही थी। दो दिन से उसने कुछ नहीं खाया था।
रिद्धि को वर्ष 2013 में इंदौर जू से वन विहार लाया गया था, तब वह 4 साल की थी। तब से वह वन विहार में आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण थी। लोग खास तौर पर उसे देखने आते थे।
रिद्धि की मौत 18-19 सितंबर की रात में हुई है। सुबह उसे उसके बाड़े में मृत पाया गया। वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. अतुल गुप्ता ने उसकी जांच की और मौत की पुष्टि की। वन विहार प्रबंधन के मुताबिक, रिद्धि ने पिछले दो दिनों से कुछ नहीं खाया था, हालांकि ऐसा पहले भी कई बार हो चुका था, इसलिए इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
भोपाल वन विहार में अब 15 बाघ
पोस्टमार्टम के बाद पता चला कि रिद्धि की मौत उसके अंदरूनी अंगों के काम बंद कर देने की वजह से हुई। वन्यप्राणी चिकित्सकों की एक टीम ने उसका पोस्टमार्टम किया। इसके बाद बाघिन का अंतिम संस्कार किया गया। अब वन विहार में 15 बाघ बचे हैं। आमतौर पर जंगल में बाघ की उम्र 12-13 साल होती है, लेकिन जू में उनकी उम्र 15-16 साल तक हो सकती है। हालांकि, सफेद बाघ जीन में बदलाव के कारण कमजोर होते हैं, लेकिन रिद्धि ने अच्छी और लंबी जिंदगी जी।
मोहन था पहला सफेद बाघ
भारत में सफेद बाघों का प्रसिद्ध उदाहरण मध्यप्रदेश के रीवा के जंगलों से आता है। वर्ष 1951 में, महाराजा मार्तण्ड सिंह ने एक सफेद बाघ शावक को पकड़ने में सफलता पाई थी। बाद में इसका नाम मोहन रखा गया। उसी ने देश में सफेद बाघों की वंशावली की शुरुआत की। उसकी संतानें बाद में सफेद बाघों के संरक्षण और प्रजनन कार्यक्रम का हिस्सा बनीं।
सफेद बाघों का प्रजनन कार्यक्रम
सफेद बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए चिड़ियाघरों ने मोहन और उसकी संतानों के जरिए प्रजनन कार्यक्रम शुरू किए। इसके बाद सफेद बाघों की संख्या में कुछ बढ़ोतरी हुई। कई चिड़ियाघरों में इन्हें संरक्षित किया गया। चूंकि सफेद बाघ जंगली प्रकृति में दुर्लभ होते हैं। उनके जीन में बदलाव होते हैं, इसलिए इन्हें सामान्य बाघों की तुलना में जीवित रहना कठिन होता है।
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